- अगर सिख भाईचारा हिन्दुओं का हिस्सा होता तो फिर उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा न मिलता
नई दिल्ली, 20 जनवरी
दिल्ली के विधायक व दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डी.एस.जी.एम.सी.) के महासचिव मनजिन्द्र सिंह सिरसा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अगर संविधान की धारा 25 में संशोधन करके सिखों को अलग पहचान दी जाती है तो इससे अनुसूचित जातीयों के आरक्षण की स्थिती पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यहां जारी किए बए ब्यान में श्री सिरसा ने कहा कि सिख धारा 25 में संशोधन करके आरक्षण की मांग कर रहे हैं, जबकि आरक्षण संविधान की धारा 15 और 16 तहत प्रदान किया गया है। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि आरक्षण कभी भी धर्म के आधार पर प्रदान नहीं किया गया, बल्कि यह जाती के आधार पर प्रदान किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत में मुस्लिम और इसाई भाईचारे के लिए आरक्षण इस लिए लागू नहीं किया गया क्योंकि उनमें जाती प्रथा नहीं है क्योंकि उनमें जाती प्रथा नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आरक्षण किसी भी जाती के लिए तब ही लागू होता है जब भारत का राष्ट्रपति इस के लिए नोटीफिकेशन जारी करता है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी यह स्पष्ट किया है कि किसी भी जाती को अनुसूचित जाती सूचि में शामिल करने या हटाने का फैसला तब ही किया जाता है जब यह बात साबित करने के लिए आंकड़े उपलब्ध हों कि उस जाती का रूतबा आरक्षण श्रेणियों के बराबर आता हे।
उन्होंने सवाल किया कि अगर सिख हिन्दुओं का हिस्सा हैं तो इन के लिए आरक्षण हिन्दु भाईचारे के साथ ही लागू क्यों नहीं किया गया व इसकी बाद में व्यवस्था क्यों करनी पड़ी। उन्होंने ओर सवाल किया कि अगर सिख भाईचारा अलग नहीं है तो फिर इस को देश में अल्पसंख्यक दर्जा क्यों दिया गया है। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक गिनती स्पष्ट करता है कि सिखों की अलग पहचान है व उन्हें इसका संविधानक अधिकार व दर्जा दिए जाने की जरूरत है। श्री सिरसा ने कहा कि उन्होंने मीडिया रिपोर्टें देखी हैं जो कि सिख भाईचारे के सदस्यों के मनों में आरक्षण के लिए असमंजस की स्थिती पैदा कर रही है व यह देख कर उनके मन को ठेस पहुंची है कि एसी रिपोर्टें न केवल भ्रम पैदा कर रही हैं बल्कि संविधन में संशोधन करके अलग सिख पहचान स्थापित करने के राह में बाधा भी बन रही है।
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