वसंत प्रकृति और मानव मन के संयुक्त उमंग का महापर्व है। प्रकृति अपने समस्त श्रृंगार के साथ वसंत का अभिनंदन करती है। आम के बौर कोयल की कूक से वसंत के आगमन का संदेश प्रसारित होता है। इस संदेश से मानव मन पुलकित व उल्लसित हो उठता है।
वसंत मन में नव उमंग एवं हृदय में सजलभाव को जगाता है। नई आशाओं एवं कामनाओं को जन्म देता है। संभवत: इन्हीं सब कामनाओं को परिष्कृत एवं उदात्त करने के लिए सरस्वती पूजन की परंपरा प्रचलित हुई है। वसंत पंचमी उमंग, उल्लास तथा बुद्धि, विद्या एवं ज्ञान के समन्वय का पर्व है।
ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ ही प्रकृति जीवंत एवं चैतन्यमय हो उठती है। प्रकृति कुसुम-कलिकाओं की सुगंध से गमक उठती है। वसंत की यह मादक तरंग मनुष्य के रग-रग में आह्लाद और उल्लास की नवस्फूर्ति भर देती है। प्रकृति के इस सुंदर आंगन में मानव नूतन सौंदर्य बोध को अगणित आकार देता है। इन्हीं सब कारणों से वसंतोत्सव भारत की सर्वाधिक प्राचीन और सशक्त परंपरा रही है।
वसंत के आगमन से शीतकालीन जड़ता समाप्त हो जाती है। प्रकृतिस्थ होकर मानव भी उल्लसित हो उठता है। मनुष्य के अंदर का यह उल्लास समाज में आह्लादमय उत्सव के रूप में प्रकट होता है। वसंत के नव परिवेश में मानवीय इच्छा, आशाएं एवं कामनाएं अंगड़ाई लेती हैं। प्रकृति प्रदत्त इन भावों के परिष्कृत व उदात्त रहने के लिए ज्ञान की आवश्यकता है। अत: वसंत पंचमी पर ज्ञान की देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है, ताकि मानव उत्साह और उल्लास के साथ ही आत्मज्योति को प्रज्वलित कर सके। वह तमस से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ सके। सरस्वती की साधना एवं उपासना वसंत के उल्लास के साथ त्याग, तप और आनंद का परिचायक है। उनकी उपासना-आराधना वैदिक धर्मावलंबियों तक ही सीमित नहीं है, जैन मतावलंबी भी इनकी उपासना करते हैं। बौद्ध धर्म ने भी मां सरस्वती को अपने भक्तों को ज्ञान एवं समृद्धि देने वाली शक्ति के रूप में निरूपित किया है। भारतीय मनीषा ने मां सरस्वती को साधना से जोड़कर और भी अवर्णनीय बना दिया है।
सरस्वती पूजन वसंत की उमंग के साथ त्याग, तप और आनंद का पर्व है। उस पर्व को कविगणों ने अपनी रचनाओं में अभिन्न स्थान दिया है। उन्होंने देवी सरस्वती की ज्ञान एवं कला की देवी के रूप में उपासना, अभ्यर्थना की है। एक ओर जहां सरस्वती संस्कृति के प्रतिमानों में उतरी हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय वैदिक साहित्य से पुराण और अन्य धार्मिक साहित्य में भी उनका स्वरूप दृष्टिगोचर होता है। सरस्वती विद्या, कला और संगीत की सबसे प्राचीन अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। इस तरह वसंत के इस दिव्य वातावरण में वासंती छटा एवं ज्ञान के आलोक का समन्वय एक नवीन एवं अमूर्त भाव का सृजन करता है।
वसंत पंचमी का पर्व बुद्धि, विद्या और ज्ञान के द्वारा भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रगति का पथ प्रशस्त करता है। विवेक का प्रज्वलन ही इस पर्व का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। यह पावन दिवस ही गायत्री परिवार के जनक युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आध्यात्मिक जन्मदिवस भी है। अत: यह पावन दिवस संकल्प का पर्व है, मानवता के लिए जीने का पर्व है। जीवन को प्रकृति के साथ एकाकार करने का उत्सव है। वसंत में जीवन, आशा, उत्साह, उमंग से भरा रहे तथा विद्या और बुद्धि का समुचित सुनियोजित हो रहे, तभी इस पर्व की सार्थकता सिद्ध हो सकती है।
विजय गर्ग
सेवानिवृत्त प्राचार्य
मलोट