कवि प्रदीप |
सन 1962..हम चीन से लड़ाई में हार गए थे..अनगिनत जवान शहीद हुए थे..और ऐसे समय में भारतीय सिनेमा जगत के लोग उन शहीदों के परिवारों की आर्थिक सहायता के लिए आगे आये..डायरेक्ट मेहबूब खान ने 27 जनवरी 1963 की शाम एक म्यूजिकल कॉन्सर्ट रखा..बहुत से दिग्गजों ने इस कॉन्सर्ट में परफॉर्म किया था.. रफी के बाद लता की बारी आई..उसने अल्लाह तेरो नाम,ईश्वर तेरो नाम के बाद एक ऐसा गीत गाया जो राष्ट्रीगीत और राष्ट्र गान के बाद सबसे बड़ा राष्ट्र प्रेम का गीत साबित हुआ...आइए पहले बताएं कि इस गीत की रचना कैसे हुई..दरअसल इस कॉन्सर्ट के लिए मशहूर संगीतकार सी रामचंद्रन भी आमंत्रित थे..लेकिन उनके पास वहां परफॉर्म करने के लिए कोई गीत नही था..उन्होंने अपने प्रिय मित्र रामचन्द्र द्विवेदी या कवि प्रदीप से एक गीत लिखने की मांग की..यह मस्त फकीर देशप्रेम पे बहुत अच्छा लिखता था..सन 1943 में इसका लिखा एक गीत गुलाम देश में हलचल पैदा कर गया था..बोल थे
दूर हटो ऐ दुनिया वालो
हिन्दोस्तान हमारा है..
यही वह गीतकार था जिसके गीत हैं..
1 साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
2 आओ बच्चो तुम्हे दिखाएं झांकी हिन्दोस्तान की
3 कितना बदल गया इंसान
4 चल अकेला, चल अकेला..तेरा मेला पीछे छूटा राही
5 हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के
तो यह कवि प्रदीप अलबेला सा.. समुंदर के किनारे टहल रहा था..कवि मन सागर जैसे मन में डुबकियां लगा रहा था और अचानक कुछ पंक्तियां दिमाग में कौंधी..वहीं किसी अजनबी से pen उधार लिया और सिगरेट की खाली डिबिया को फाड़ कर उसके पीछे वो पंक्तियां लिख ली..घर आया और उसी समुंदर के किनारे से जो सीप जैसे शब्द मिले थे..उन्ही शब्दों की सीपियों से वो मोती निकले..जो लता मंगेश्कर को बहुमूल्य बना गए..कहतें है जब लता यह गीत गाने के बाद शाम की पार्टी में एक कोने में चाय पी रही थी..तो कॉन्सर्ट के संचालक मेहबूब खान ने लता से कहा कि..लता तुम्हे पंडित नेहरू ने बुलाया है..लता अवाक थी कि क्या उससे कोई गलती हुई है जो प्रधानमंत्री ने विशेषकर उन्हें बुलाया है..लता डरती हुई पंडित नेहरू के पास पहुंची और पंडित जी ने हाथ जोड़कर रुंधे गले से कहा..बेटी आज तुमने गाकर मुझे रुला दिया...दोस्तो ! अमर हो गई कवि प्रदीप की वह रचना..जो लता ने अपने 100 से अधिक बड़े कॉन्सर्ट में गाई थी..गीत लिखकर लता को थमाते हुए कवि प्रदीप ने लता से कहा था.. लता देखना यह गीत इतिहास बनाएगा और अमर हो जाएगा..कवि मुख की संतवाणी सच्च साबित हुई...लेकिन विडंबना देखिए...इस अमर गीत के जन्मदाता कवि प्रदीप को उस कॉन्सर्ट में आमंत्रित ही नही किया गया था..इसे आप क्या कहेंगे ?
किस्मत या दुर्भाग्य??
लेकिन मैं इस अमर गीत के लेखक को आज उसके जन्मदिन पे श्रद्धा नमन कहता हूं ।..."राज"
इधर से गुजरा था, सोचा सलाम करता चलूं ।
विजय गर्ग
मलोट