- 47 प्रकार की हो सकती है शिकायतें-
श्री मुक्तसर साहिब, 09 मार्च- देश में अनुसूचित जाति एवं जन जाति के लोगों पर अत्याचार के मामले आते रहते हैं। अमीर और राजसी रसूख वाले व्यक्ति ऐसे मामलों को कई प्रकार के हरबे वर्त कर निचले स्तर पर ही दबा देते हैं। सरकारे दरबारे सुनवाई नहीं होने दी जाती। पीडि़त व्यक्ति अपने पर हुए अत्याचारों की पीड़ा अपने दिल अंदर दबा कर घुट घुट कर मरने के लिए मजबूर हो जाते हैं। भारत सरकार ने जुलम एवं ज्यादती के शिकार अ.जाति/जन जाति के पीडि़त व्यक्तियोंं के लिए राष्ट्रीय स्तर पर टोल फ्री नंबर 14566 जारी किया है। यह नंबर हर रोज चौबीस घंटे कार्य करता है और अ. जाति/जन जाती का कोई भी पीडि़त व्यक्ति इस पर अपनी शिकायत दर्ज करवा सकता है। एल.बी.सी.टी. (लार्ड बुद्धा चैरीटेबल ट्रस्ट) के चेयरमैन और आल इंडिया एस.सी./बी.सी./एस.टी. एकता भलाई मंच के राष्ट्रीय प्रधान दलित रत्न जगदीश राय ढोसीवाल ने बताया है कि दलित अत्याचारों की श्रेणी में कुल 47 अपराधों को शामिल किया गया है, जिनमें एट्रोसिटी एक्ट 1989 (छूत छात रोकू एक्ट) अधीन सजा निर्धारित की गई है। जनरल वर्ग से संबंधित किसी भी व्यक्ति द्वारा अनुसूचित जाति/जन जाति के किसी भी व्यक्ति को जबरदस्ती रास्ता रोक कर गुजरने न देना, जयदाद पर कब्जा करना, नंगा करना, औरत की इज्जत लूटने, पुलिस प्रशासन पास झूठी जानकारी देने या शिकायत करने, वोट डालने से रोकना, न खाने पीने योग्य खाने के लिए मजबूर करना, जनतक स्थानों पर बेइज्जत करना और बुनियादी अधिकारों का उपयोग न करने देना आदि शामिल है। प्रधान ढोसीवाल ने आगे यह भी बताया है कि जनरल वर्ग के किसी भी प्रशाशनिक या पुलिस अधिकारों द्वारा अनुसूचित जाति/जन जाति वर्ग से संबंधित व्यक्ति की दर्खासत पर सुनवाई न करने या उसका जायजा या कानूनी कार्य न करना आदि भी इस एक्ट अधीन सजा योग्य अपराध घोषित किया गया है। प्रधान ढोसीवाल ने मांग की है कि टोल फ्री नंबर पर प्राप्त हुई शिकायतों को पहल के आधार पर समाधान करवाया जाए।